अजीब सा क्षण
यह अजीब सा क्षण होता है जब आप किसी से लगभग दो वर्ष बाद मिलते हैं तब आपका दिल और दिमाग सोच रहा होता है कि इस सहज मौन को क्या बोल के खतम कर दिया जाए लेकिन बहुत सोच कर भी आपको कुछ नहीं सूझता और मौन लंबा हो जाता है। आप कुछ भी कह कर अनकम्फर्टेबल साइलेंस को तोड़ सकते, लेकिन आपसे कहा नहीं जाता। मैं कह सकता था कि क्या खाओगी, कुछ आॅडर कर सकती हो, तुम हंसती हो तो सुंदर लगती हो, काॅलेज कैसा जा रहा है, घर पर सब कैसे हैं, तुम्हारा नया शहर कैसा है या फिर कुछ भी, लेकिन मैं बस देखता रहा और यह बस सोचता ही रह गया कि क्या कहूं?
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