किसी के निजी संबंधों कि इज्जत करें। ताकि उसे कोई छुपा कर संबंध को गलत दिशा ना दे।

एक अजीब सी बीमारी है इस देश में चटखारे लेकर निजी संबंधों पर बात करने की, क़िस्से गढ़ने की। समाज में मौजूद इसी प्रवृत्ति के चलते विवाहेतर संबंधों को तो छोड़िए, विवाह-पूर्व ख़ूबसूरत प्रेम संबंधों को भी लोगों को छुपाना पड़ता है।
अगर सियासत में हैं, फिर तो आपको प्रेम करते हुए रूप में लोग पचा ही नहीं पाते। सुभाष चंद्र बोस के प्रेम-प्रसंग को लेकर भी लोग अचंभित ही थे जैसे वो आदमी न हों, उनमें भावनाएं न हों, संवेदनाएं न हों।
मेरा ख़याल है कि जो अच्छा प्रेमी नहीं होगा, वो अच्छा नेता भी शायद साबित नहीं होगा। ख़ूब प्रेम करना चाहिए, बहुतों से प्रेम कीजिए, बहुतों को प्रेम दीजिए क्योंकि प्रेम कभी गंदा नहीं होता। प्रेम किसी भी रूप में सुंदर ही होता है। परस्पर सहमति से बनाया गया हर संबंध जायज-खुबसूरत होता है।

काॅलेज ऑफ काॅमर्स या कई कोचिंग संस्थान के अनेको साथी अपने प्रेम संबंधों को सिर्फ़ इसलिए छिपाते हैं, हाथ में हाथ डाले इको पार्क या पटना जू में दिख जाने से इसलिए सकुचाते हैं कि कहीं उन्हें अगंभीर क़िस्म का व्यक्ति न समझ लिया जाए।
ऐसा थोरही है कि प्रेम करने व्यक्ति गंभीर नहीं होता, अपने मंजिल के प्रति केंद्रीत नहीं होता।

लोग नेहरू, इंदिरा, अटल, मुलायम, जयललिता, नीतीश, सबके अफ़साने सुनाते हैं। और ये अफ़साने प्रेम को चेरिश करने के लिए नहीं, बल्कि उसे भद्दा बनाने की मानसिकता से सुनाया जाता है। मैं तो कहता हूँ कि क्या फर्क़ पड़ता है अगर यह सच भी होता। दो लोग अगर मोहब्बत करते हैं, तो इसे गरिमा के साथ देखा जाना चाहिए।
अगर हमारे नेताओं के विवाहेतर संबंध हों भी, तो कौन-सा आसमान टूट जाएगा। बल्कि मैं तो चाहता हूँ कि वो नफ़रत फैलाना छोड़कर, प्यार में समंदर में डूबें। इससे देश में दो धर्मो, दो राजनीतिक पार्टीयो, दो समुदायों के अगुआ के बीच प्रेम और भाईचारा भी बढेगा। वे बहुत अवसाद में जीते रहते हैं। इसलिए उनके लिए प्रेम बहुत जरूरी है।

हां, काम को प्रेम से बिल्कुल अलग करके देखने वाले भी मुझे अजीब ही लगते हैं। पूरी जिंदगी तो काम ही करना है तो भाई फिर प्रेम कब करेंगे। प्रकृति के विरुद्ध आप नई कौन-सी रिवायत चलाना चाहते हैं ?
लोग मूल्यों का हवाला देते हैं, पर इससे क्या ज़मना तो बदलता रहता है!

प्रेम क्या किसी बंदिश में होगा ? वह अपने से कम या ज्यादा उम्र के व्यक्ति के साथ हो सकता है, वह एक ब्याहता औरत या पुरुष से हो सकता है।
वह कभी भी किसी से भी, कई बार, कई तरीक़े से, किसी भी जगह हो सकता है, कई लोगों से हो सकता है। हमें पूरी सिद्दत और सहृदयता से प्रेम को स्वीकार करना चाहिए। एक बात और  कोई अपने रिश्ते को निजी और गोपनीय रखना चाहे, तो उसका भी सम्मान किया जाना चाहिए। पर, किसी डर से उसे छुपाना पड़े, इसका मतलब हम स्वस्थ समाज नहीं गढ़ पा रहे।

मेरी ख़्वाहिश है कि हमारे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक, नेता और हर जनसामान्य बेझिझक अपने संबंधों को स्वीकार करें।
वे अपने प्रेमी या प्रेमिका, पति या पत्नी के साथ बगैर शर्म, बगैर बेइज्जत होने के ख़ौफ़ खाए, कमर में हाथ डाले घूमें, एक-दूजे का हाथ थामे सड़कें पार करें, वो बाग़ों में सैर करते दिखें।
और हम हड़बड़ाए नहीं, उन्हें डराये नहीं, बल्कि मुस्काएं।

मैं अपने प्रेम संबंधों को किसी से छुपाऊंगा नहीं, चाहे वह विवाह पूर्व का हो या विवाहेतर हो, किसी अविवाहित से हो या शादीशुदा से हो। निष्कपट प्रेम कभी अपराधबोध नहीं पैदा कर सकता। और, प्रेम स्वभावतः शांति दायक ही होता है।

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