बिहार के पत्रकारों के कलम में, नीतीश की स्याही!!
बिहार में नेता प्रतिपक्ष के द्वारा आयोजित "न्याय यात्रा" को लेकर इतनी हाय-तोबा क्यों ?
नेताओं में होना कुछ हद तक ठीक, पर मिडिया में क्यों?
मिडिया बस, खबरों और जानकारी मुहैया कराने तक ही रहे तो ठीक...किसी का बड़ाई/सराहना कर, दुसरे को नीचा/कम दिखाना ठीक नहीं!!
मिडिया बस, खबरों और जानकारी मुहैया कराने तक ही रहे तो ठीक...किसी का बड़ाई/सराहना कर, दुसरे को नीचा/कम दिखाना ठीक नहीं!!
जैसे की नीतीश कुमार की नज़रों में तेजस्वी अबोध और अज्ञानी हैं. अज्ञानी इतने कि जिन शब्दों को वे ट्वीट करते हैं उसका अर्थ भी नहीं समझते. सुशील मोदी का मानना है कि भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए लालू को जनता ख़ारिज कर चुकी है. अगर सचमुच ऐसा है तो तेजस्वी की यात्रा पर इतना हो-हल्ला क्यों मचाया जा रहा है?
दरअसल तेजस्वी की यात्रा पर शोर...घबड़ाए और डरे हुए लोगों का शोर है.
नीतीश कुमार और सुशील मोदी राजनीति के नौसिखुआ नहीं हैं. दोनों लालू यादव की ताक़त को जानते हैं. उनको यह भी पता है कि लालू जी के जन-आधार ने तेजस्वी को भविष्य के नेता के रूप में क़ुबूल कर लिया है. सुशील थोड़ा कम...लेकिन नीतीश कुमार बख़ूबी समझते हैं कि जेल में बंद लालू, बाहर वाले लालू से ज़्यादा भारी है.
आज पिछड़ों और दलितों की तरफदारी करने वाली प्रतिपक्ष की आवाज को दबाने के लिए मीडिया पर सरकार का भारी दबाव है. इसलिए प्रतिपक्ष को जो स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है.
लालू ने अपने शासनकाल में मीडिया पर इस तरह का दबाव कभी नहीं बनाया था. लालू सरकार ने कभी किसी अख़बार का विज्ञापन बंद नहीं किया था. आज के हुकुमरान मीडिया के मुँह पर जाब लगाकर बदलाव के रथ को रोकना चाहते हैं, जो संभव नहीं है.
दरअसल तेजस्वी की यात्रा पर शोर...घबड़ाए और डरे हुए लोगों का शोर है.
नीतीश कुमार और सुशील मोदी राजनीति के नौसिखुआ नहीं हैं. दोनों लालू यादव की ताक़त को जानते हैं. उनको यह भी पता है कि लालू जी के जन-आधार ने तेजस्वी को भविष्य के नेता के रूप में क़ुबूल कर लिया है. सुशील थोड़ा कम...लेकिन नीतीश कुमार बख़ूबी समझते हैं कि जेल में बंद लालू, बाहर वाले लालू से ज़्यादा भारी है.
आज पिछड़ों और दलितों की तरफदारी करने वाली प्रतिपक्ष की आवाज को दबाने के लिए मीडिया पर सरकार का भारी दबाव है. इसलिए प्रतिपक्ष को जो स्थान मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा है.
लालू ने अपने शासनकाल में मीडिया पर इस तरह का दबाव कभी नहीं बनाया था. लालू सरकार ने कभी किसी अख़बार का विज्ञापन बंद नहीं किया था. आज के हुकुमरान मीडिया के मुँह पर जाब लगाकर बदलाव के रथ को रोकना चाहते हैं, जो संभव नहीं है.
लालू ने घोटाला किया, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गये। पर वे जन-आधार के नेता है। आज भी बिहार के जनता के बीच...लालू का क्रेज है। लालू के एक आवाज पर बिहार ही नहीं पूरे देश में, सकारात्मक और नाकारात्मक दोनों चीजें संभव है।
यही सच्चाई है इसे मानना ही होगा, यदि कोई मिडिया इसके उलट लिखने या दिखाने का कोशिश करता है तो फिर आप समझ जाइये!!
और जाब लगने देना है या नहीं, या फिर विज्ञापन के चक्कर में जी-हजूरी करना है और तलवे चाटना है यह भी बिहार के मिडिया को ही तय करना होगा.
बिहार में एक अखबार तो ऐसा है जिसे पढ़ कर लगता है कि यह नीतीश चालिसा छापता हो. क्योंकि उसमें रोजाना नीतीश के सुबह की शौच से लेकर रात के सोने तक वाहीयात खबरों का पुलिंदा होता है.
और जाब लगने देना है या नहीं, या फिर विज्ञापन के चक्कर में जी-हजूरी करना है और तलवे चाटना है यह भी बिहार के मिडिया को ही तय करना होगा.
बिहार में एक अखबार तो ऐसा है जिसे पढ़ कर लगता है कि यह नीतीश चालिसा छापता हो. क्योंकि उसमें रोजाना नीतीश के सुबह की शौच से लेकर रात के सोने तक वाहीयात खबरों का पुलिंदा होता है.
देश में चौथे खंभे का दर्जा लिए है तो मजबूत बनिए, ताकि बाकी के खंभों के कमजोर होने पर भी लोकतंत्र की इमारत गिरे नहीं!!
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