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Showing posts from January, 2018

बिहार के पत्रकारों के कलम में, नीतीश की स्याही!!

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बिहार में नेता प्रतिपक्ष के द्वारा आयोजित "न्याय यात्रा" को लेकर इतनी हाय-तोबा क्यों ? नेताओं में होना कुछ हद तक ठीक, पर मिडिया में क्यों? मिडिया बस, खबरों और जानकारी मुहैया कराने तक ही रहे तो ठीक...किसी का बड़ाई/सराहना कर, दुसरे को नीचा/कम दिखाना ठीक नहीं!! जैसे की नीतीश कुमार की नज़रों में तेजस्वी अबोध और अज्ञानी हैं. अज्ञानी इतने कि जिन शब्दों को वे ट्वीट करते हैं उसका अर्थ भी नहीं समझते. सुशील मोदी का मानना है कि भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए लालू को जनता ख़ारिज कर चुकी है. अगर सचमुच ऐसा है तो तेजस्वी की यात्रा पर इतना हो-हल्ला क्यों मचाया जा रहा है? दरअसल तेजस्वी की यात्रा पर शोर...घबड़ाए और डरे हुए लोगों का शोर है. नीतीश कुमार और सुशील मोदी राजनीति के नौसिखुआ नहीं हैं. दोनों लालू यादव की ताक़त को जानते हैं. उनको यह भी पता है कि लालू जी के जन-आधार ने तेजस्वी को भविष्य के नेता के रूप में क़ुबूल कर लिया है. सुशील थोड़ा कम...लेकिन नीतीश कुमार बख़ूबी समझते हैं कि जेल में बंद लालू, बाहर वाले लालू से ज़्यादा भारी है. आज पिछड़ों और दलितों की तरफदारी करने वाली प्र...

मोतिहारी (चम्पारण)- गाँधी का कर्मभूमि, मेरा जन्मभूमि

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वैसे तो पूरे देश की तरक्की हमारे लिए मायने रखता है। पर जब बात जन्मस्थान की हो तो हरेक व्यक्ति के लिए वो जगह पहले प्रासंगिक होता है। और मैं बात कर रहा हूँ अपने फादर डिसट्रीक मोतिहारी (बिहार) की, जो मेरे लिए हमेशा प्रासंगिक रहा है। लोग कहते हैं ना कि पारस पत्थर में लोहा सटाने से लोहा सोना हो जाता है। वैसे ही आजकल नेता लोग बिहार का पारस मोतिहारी (चम्पारण) को समझने लगे है। उन्हें लगता है कि गाँधी जी की तरह ही उनकी भी कर्म भूमि चम्पारण बन जायेगी। गठबंधन में रहते हुए जब राष्ट्रीय लेबल पर ख्याति की जरूरत पड़ती है तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पैदल ही पूरे जिले में घुमने लगते हैं। फिर गठबंधन टुटने पर लालू यादव के दोनों लाल को भी विश्वासघात रैली के लिए चम्पारण ही याद आता है। नीतीश सरकार की हर घर जल योजना के शुरुआत के लिए भी चम्पारण को ही  चुना जाता है। जन अधिकार पार्टी (जाप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पप्पू यादव भी बात-बात पर जिले में आ धमकते है। पर किसी ने भी असल में जिले के लिए अपने स्तर से कुछ खास नहीं किया है। पिछले साल ही शहर के युवा नेता छोटू जायसवाल के मर्...

भावुक यादें...

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कुछ भावुक यादें, जिसे एक दम से भुला पाना संभव नहीं होता! एक मासूम सी प्यारी बच्ची, जिसका नाम-घर-जात-धर्म कुछ नहीं जाना। इस व्यापारी दुनिया में विदआउज सेलिंग स्किल् के ही पटना के एक शाॅपिंग माॅल के बाहर गुब्बारे बेच रही थी। तकरीबन 10-15 मिनट के परिदृश्य में मैंने देखा कि लोग उसे देखकर या पास आते ही ऐसे भाग रहे वो 5-6 साल की बच्ची सुसाईड बाॅम्बर हो। अंत में मेरे पास भी आयी। लेकिन मैं भी उसके गुब्बारे नहीं खरीद पाया, क्योंकि गुब्बारे से खेलने का अब जी नहीं करता और ना ही वैसी कोई प्रियतम-प्रेमिका है जिसे गुब्बारे उपहार में दूं। पर अपने हैसियत से जो बन पाया, किया। बच्ची हंसकर फोटो खींचवाई, फिर चल दी...उसने कुछ काहा नहीं। मैं पूरे रास्ते सोचता रहा, लोग आखिर क्यों बच्ची से दूर भाग रहे थे? क्या उसके गंदे कपड़ों व बदबू की वजह से? या फिर उस सोच की वजह से "गरीब ट्रेन्ड बच्चे ठग लेते हैं, चुरा लेते हैं"। या फिर 2 घंटे सिनेमा हाॅल 2-4 घंटे फोन-लैपटॉप पर बिताने के बाद, समय ना होने की वजह से। प्रश्न उठता है वो या उसके जैसे हजारों बच्चे उस हालात में  क्यो है? क्या ...